एलएसी पर हालात सामान्य’, संसद में बोले विदेश मंत्री एस जयशंकर


नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, “2020 में हमारी जवाबी तैनाती के बाद पैदा हुई स्थिति ने कई सवाल खड़े किए थे. इस दौरान हमारा उद्देश्य तत्काल प्राथमिकता टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों की वापसी सुनिश्चित करना था ताकि आगे कोई अप्रिय घटना या झड़प न हो. इसे पूरी तरह से हासिल किया गया था. अगली प्राथमिकता डी-एस्केलेशन पर थी. हम इस बात पर बहुत स्पष्ट थे और रहेंगे कि तीन प्रमुख सिद्धांतों का सभी परिस्थितियों में पालन किया जाना चाहिए. 1. दोनों पक्षों को एलएसी का सख्ती से पालन करना चाहिए. 2. किसी भी पक्ष को एकतरफा रूप से यथास्थिति को बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए. 3. अतीत में हुए समझौतों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए.”

एस.जयशंकर ने कहा, “2005 में सीमा विवाद के समाधान के लिए राजनीतिक मापदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों पर सहमति बनी थी. 2012 में WMCC की स्थापना की गई और एक साल बाद हम सीमा विवाद सहयोग पर पहुंचे. इस समझौते को याद करने का मेरा उद्देश्य शांति और सौहार्द सुनिश्चित करने के लिए हमारे साझा प्रयासों की विस्तृत प्रकृति को रेखांकित करना है और यह बताना है कि 2020 के बाद हमने क्या-क्या किया है.” 

एस.जयशंकर ने कहा, “चीन के साथ हमारे संबंधों का समकालीन चरण 1988 से शुरू होता है, तब सबका मानना था कि चीन-भारत सीमा विवाद को शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण परामर्श के माध्यम से सुलझाया जाएगा. 1991 में, दोनों पक्ष सीमा विवाद के अंतिम समाधान तक LAC के साथ क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बनाए रखने पर सहमत हुए. इसके बाद 1993 में शांति और सौहार्द बनाए रखने पर एक समझौता हुआ. इसके बाद 1996 में भारत और चीन सैन्य क्षेत्र में विश्वास-निर्माण उपायों पर सहमत हुए. 2003 में हमने अपने संबंधों और व्यापक सहयोग के सिद्धांतों की घोषणा को अंतिम रूप दिया, जिसमें विशेष प्रतिनिधियों की नियुक्ति भी शामिल थी. 2005 में, LAC के साथ विश्वास-निर्माण उपायों के कार्यान्वयन के तौर-तरीकों पर एक प्रोटोकॉल तैयार किया गया था.”

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, “सदन जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़पों की परिस्थितियों से अच्छी तरह परिचित है। उसके बाद से हम ऐसे हालात का सामना कर रहे हैं, जहां 45 सालों में इतनी मौतें हुई हैं. इस घटना के बाद हमें स्तविक नियंत्रण रेखा के करीब भारी हथियारों की तैनाती करनी पड़ी थी.”

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, “चीन ने 1962 के संघर्ष और उससे पहले की घटना के परिणामस्वरूप अक्साई चिन में 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है. इसके अलावा पाकिस्तान ने 1963 में अवैध रूप से भारतीय क्षेत्र चीन को सौंप दिया था, जो 1948 से उसके कब्जे में है. भारत और चीन ने सीमा मुद्दे को हल करने के लिए कई दशकों तक बातचीत की है. जबकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) में कुछ क्षेत्रों में आम समझ नहीं है. 

हम सीमा समझौते के लिए एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य ढांचे पर पहुंचने के लिए द्विपक्षीय चर्चाओं के माध्यम से चीन के साथ जुड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं.” 

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