जीव का सबसे बड़ा शत्रु कर्म है : मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी

रायपुर।संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। सोमवार को तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने कहा कि जीव का सबसे बड़ा शत्रु कर्म है। इस सबसे बड़े शत्रु को परास्त करना है तो इसके घर में घुसकर सब ध्वस्त करना पड़ता है। जैसे रामचंद्रजी लंका पर विजय प्राप्त कर सके,इसका कारण था कि लंका पति रावण का भाई विभीषण रामचंद्रजी के पक्ष में था। इस धरती पर जितने भी प्राणी है वह सब अपने-अपने संचित कर्मों के कारण ही संसार में चक्कर लगा रहे हैं। अपने किए कर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म लेते हैं और किए हुए कर्मों का फल भोगे बिना प्राणी का छुटकारा नहीं होता। 

मुनिश्री ने कहा कि स्वाध्याय जरूरी है। धर्म ग्रंथों का अध्ययन जरूरी है। ज्ञान बढ़ाने की उदासीनता नहीं,ज्ञान बढ़ाने के प्रति उल्लास होना चाहिए। तप के लिए जैसे उल्लास होता है वैसे ज्ञान के लिए भी उल्लास होना चाहिए। ग्रंथों को शो-पीस के लिए नहीं समझों, उन्हें सजाकर नहीं रखो,ज्ञान के लिए पढ़ो। हमेशा नया-नया ज्ञान जीवन के अंदर लाना चाहिए। जैसे आप एक ही एक मूवी को बार-बार देखना पसंद करते हो वैसे ही ज्ञान बढाने के लिए ग्रंथ को भी बार-बार पढ़ना चाहिए।

मुनिश्री ने कहा कि स्वाध्याय इसलिए बहुत जरूरी है कि तब तक नया ज्ञान पाठ शुरू नहीं करना चाहिए जब तक पिछला कंठस्थ ना हो जाए। एक गाथा का स्तवन आप रोज करो और रोजाना ऐसा ही करते रहो,साल भर में आपको ना जाने कितने स्तवन पक्के हो जाएंगे। जैसे आप अपने घर को पुनः बनवाते हो तो उस घर को छोड़कर दूसरे घर में जाते हो, न जाने कितनी तैयारी करते हो, वैसे ही पर गांव, परदेश में जाते हो तो न जाने कितनी कितनी तैयारी करते हो, वैसे ही आपकी परलोक के अंदर जाने की कितनी तैयारी है ? 

मुनिश्री ने शुद्ध भक्ति की बात को आगे बढाते हुए कहा कि आप ज्ञान पंचमी के दिन ज्ञान की पूजा करते हो, ज्ञान के उपकरण आप चढ़ाते हो,वह द्रव्य शुद्ध भक्ति है। भाव शुद्ध भक्ति के अंदर क्या अपना समय निकालकर ज्ञान भंडार को संवारने का कार्य करते हो ? पुस्तक पत्रों को व्यवस्थित करते हो ? बहुत से महात्मा ज्ञान भंडार को सजा संवार रहे हैं। आज डिजिटली बहुत सी पुस्तकों को व्यवस्थित कर रहे हैं। आज साधु भगवंतों को यदि कोई किताब की जरूरत है तो सूचना भेजने पर तुरंत प्राप्त हो जाती है। ऐसी व्यवस्था गुजरात के अंदर की जा रही है। 

मुनिश्री ने कहा कि आपके घर के अंदर बहुत अच्छा ज्ञान भंडार होगा और पुस्तक खूब होगी लेकिन वर्ष के अंदर कितनी बार उसका परिमार्जन होता है। कारण है कि ज्ञान की रुचि कम हो गई है। आपके पास शक्ति हो तो आप भी ज्ञान भंडार को सजाने संवारने और परिमार्जन का कार्य करो।

पर्युषण के प्रथम तीन दिन श्रावकों के लिए कर्तव्य होते हैं। परमात्मा के शासन को चलाने की परंपरा के श्रृंखला में आचार्य लक्ष्मी सुरीश्वर जी महाराज ने प्रवचन की एक व्यवस्था की। कौन से कर्तव्य ऐसे हैं जो जीवन में एक बार करना चाहिए। कौन से कर्तव्य ऐसे हैं जो वर्ष में एक बार करना चाहिए। कौन से कर्तव्य जो पर्युषण के अंदर करने चाहिए और कौन से कर्तव्य ऐसे हैं जो दैनिक है। ऐसे 40 कर्तव्यों की बात आचार्य लक्ष्मी सूरीश्वर जी महाराज ने की है।

Post a Comment

0 Comments