बेहतर स्वास्थ्य के लिए वात-पित्त-कफ का संतुलन जरूरी, आयुर्वेद पद्धति अपनाये : डॉ. पारस चोपड़ा

 

रायपुर। मनुष्य को प्रकृति ने स्वस्थ रहने के लिए अनेकानेक उपहारों से नवाजा है। अपने जीवन को स्वस्थ बनाए रखने को हरेक व्यक्ति लालायित रहता है, चाहे वह राजा हो, रंक हो, गरीब या अमीर हो। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की शुरूआत से बहुत पहले ही मानव ने प्रकृति में ही स्वस्थ बने रहने उपायों की खोज कर ली थी। प्राचीन मनीषियों जैसे चरक, धन्वंतरि, च्यवन ऋषि आदि ने बीमार हो जाने पर प्रकृति से ही उपचार की अलग से पद्धति का निर्माण कर लिया था। इसके अलावा वेदों में भी विभिन्न उपायों का विवरण उपलब्ध है। स्वस्थ बने रहने और बीमार हो जाने पर उपचार की जानकारियां आज दादी-नानी के नुस्खे के रूप में विभिन्न माध्यमों में प्रकाशित होते ही रहते हैं। यह बातें आज प्रेस क्लब में आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. पारस चोपड़ा ने कही। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य प्रणाली में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान वात-पित्त-कफ के संतुलन का है। इसी संतुलन के बिगड़ने पर हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होता है। अब उपचार की बात सबसे पहले घर की रसोई से शुरू हो कर किचन गार्डन होते हुए शाक-सब्जी तथा फलों तक जाती है।


डॉ. चोपड़ा ने यह भी कहा कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूक प्रत्येक इंसान सदैव समय रहते अपनी समस्त छोटी-बड़ी समस्याओं के इलाज पर तुरंत ध्यान देता है और सदा निरोगी बने रहते हैं। यह माना हुआ तथ्य है कि शरीर की छोटी-छोटी समस्याएँ आगे चल कर गंभीर रूप जब ले लेती है, तभी हम बीमारी का निदान ढूंढते हैं। अपनी दिनचर्या में बहुत ही साधारण व छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने आपको स्वस्थ बनाए रखा जा सकता हैं। आधुनिक जीवन शैली में व्यस्तता का होना स्वाभाविक ही है। ऐसे हमें खान पान का सबसे ज्यादा ध्यान रखना चाहिए। वात-पित्ता तथा कफ संतुलन बनाने में इससे हमें मदद मिलती है। 


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