शादी के वादे पर विवाहिता से संबंध बनाना रेप नही: कोर्ट ने कहा शादीशुदा को ऐसा कह कर फुसलाया नही जा सकता

 


केस दर्ज कराने वाली महिला विवाहित है। उसने शादी के वादे पर अपनी इच्छा से पति के अलावा एक अन्य पुरुष से संबंध बनाए हैं। यह जानते हुए कि उसके साथ वह तलाक से पहले शादी नहीं कर सकती है। इस तरह यह वादा अवैध है और यह भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 376 (2)(N) के तहत केस दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता है।’



6 दिसंबर यानी मंगलवार को झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के बाद ये फैसला सुनाया है।


इस फैसले ने एक नई बहस को जन्म दिया है कि क्या विवाहित महिला को शादी का झांसा देकर संबंध बनाना रेप होगा? अगर कोई पुरुष ऐसा करता है तो क्या वह कानून की नजर में रेपिस्ट है? आइए हाईकोर्ट के फैसले के जरिए इस पूरे मामले को समझते हैं…


सबसे पहले जानिए पूरा मामला

नवंबर 2019 में देवघर जिले के सारवां मेले में आरोपी शख्स की पोस्टिंग हुई थी। इसी दौरान पहली बार वह पीड़ित महिला से उसके पिता की दुकान पर मिला था।


इसके बाद दोनों के बीच बातचीत होने लगी। आरोपी शख्स को पता चला कि महिला शादीशुदा है और उसने अपने पति से तलाक की एक याचिका कोर्ट में दायर की है।


धीरे-धीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं। गूगल पे के जरिए कई बार दोनों ने पैसों का लेन-देन भी किया। 2021 में देवघर महिला पुलिस स्टेशन के केस नंबर- 6 के मुताबिक आरोपी शख्स ने तलाक के बाद शादी का वादा कर कई मौकों पर शादीशुदा महिला के साथ यौन संबंध बनाए।


3 दिसंबर 2019 को शख्स ने महिला के गले में वरमाला भी डाली थी, लेकिन 11 फरवरी 2021 को अपने वादे से मुकरते हुए शख्स ने शादी करने से इनकार कर दिया।


इसके बाद महिला ने IPC की तीन धाराओं 406, 420, 376 (2) (N) के तहत शख्स के खिलाफ केस दर्ज कराया। 24 नवंबर 2021 को देवघर जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इस मामले में कार्रवाई का आदेश दिया तो इस केस को खत्म कराने के लिए आरोपी शख्स झारखंड हाईकोर्ट पहुंच गया।


आरोपी शख्स की वकील प्राची प्रदीप्ति ने हाईकोर्ट में कहा-


‘CrPC की धारा 164 के तहत महिला ने अपने बयान में स्वीकार किया है कि जब आरोपी ने यौन संबंध बनाए तब वह शादीशुदा थी और पति से तलाक की उसकी याचिका कोर्ट में पेंडिंग थी। ऐसे में महिला को शादी के लिए लुभाने का सवाल ही नहीं उठता है।’


इसके साथ ही आरोपी शख्स के पक्ष में वकील प्राची ने कहा कि दोनों लोग वयस्क और मैच्योर हैं। दोनों ने सहमति से यौन संबंध बनाए हैं, ऐसे में अब शख्स के खिलाफ IPC की धारा 376 (2) (N) के तहत केस दर्ज नहीं कराया जा सकता है।


शादीशुदा महिला की ओर से तर्क देते हुए वकील सुमित प्रकाश ने कहा कि-


‘हाईकोर्ट में अपने बचाव के लिए याचिका दायर करने वाले शख्स ने शादी का झूठा वादा करके महिला के साथ यौन संबंध बनाए हैं। इसीलिए चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने भी इस केस की सुनवाई के बाद शख्स के खिलाफ संबंधित धाराओं में कार्रवाई का आदेश दिया था।’


वकील सुमित ने आगे कहा कि जिला न्यायिक अदालत ने भी सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा है कि अगर शादी के बहाने यौन संबंध स्थापित करके कोई मुकरता है तो ये IPC की धारा 376 के तहत अपराध माना जाएगा।


आरोपी शख्स की मां ने भी महिला के खिलाफ दर्ज कराया था केस

हाईकोर्ट के फैसले में इस बात का जिक्र है कि आरोपी शख्स की मां सुमन देवी ने भी अपने बेटे पर आरोप लगाने वाली महिला के खिलाफ केस दर्ज कराया था।


महिला के खिलाफ IPC की 9 धाराओं- 147, 341, 323, 380, 406, 420, 452, 504, 34 के तहत 18 फरवरी 2021 को केस दर्ज कराया था।


आरोपी शख्स की मां ने अपनी शिकायत में कहा था कि महिला शादीशुदा है और दोनों ने आपसी रजामंदी से संबंध बनाए थे। ऐसे में उसके बेटे के खिलाफ दर्ज कराया गया रेप का मुकदमा झूठा है।


सुनवाई के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने की ये टिप्पणी


झारखंड हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि-


‘CrPC की धारा 164 के तहत महिला ने जो बयान दिया है, उसे फैसले का आधार बनाया गया है। जब महिला शादीशुदा थी और उसके तलाक का मामला कोर्ट में था, उसी समय उसने पति के अलावा एक अन्य पुरुष के साथ यौन संबंध बनाया और इसमें दोनों की सहमति थी। जब तक पति और पत्नी के बीच तलाक नहीं हो जाता है, तब तक शादी का वादा करना कानूनी वैध नहीं है। ऐसे में तथ्यों को देखने के बाद पता चलता है कि इस केस में IPC की धारा 376 (2) (N) के तहत शख्स को आरोपी नहीं बनाया जा सकता है।’


IPC की धारा 420 लगाने का भी किया विरोध

हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं लगता है कि शख्स ने महिला को किसी भी तरह का लोभ या झांसा दिया था। IPC की धारा 420 तभी लगती है, जब शुरुआत से ही धोखे के इरादे से कुछ किया गया हो।


साथ ही कहा कि शख्स ने महिला से मुलाकात ही धोखा देने के लिए की हो या मुलाकात के बाद से ही ऐसी मंशा रही हो। ऐसा केस की कॉपी से पता नहीं चलता है।


इसके बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्रवाई के आदेश को रोकने का फैसला सुनाया। साथ ही इस मामले में नए सिरे से विचार के लिए एक बार फिर से मामले को निचली अदालत में भेज दिया गया।



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