छत्तीसगढ़ राज्य देश में वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन में अग्रणी राज्य है। विगत चार वर्षों में 54 हजार 518 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र वितरित किए गए, जिसका कुल रकबा 30 हजार 46 हेक्टेयर है। इसी प्रकार सामुदायिक वन अधिकार के 23 हजार 982 वन अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं, जिसका कुल रकबा 11 लाख 77 हजार 212 हेक्टेयर है। राज्य शासन द्वारा सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों के क्रियान्वयन में भी पहल की गई है। अब तक जिलों में 3 हजार 845 सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मान्य किए गए हैं। इसके अंतर्गत 16 लाख 60 हजार 301 हेक्टेयर भूमि के संरक्षण, प्रबंधन का अधिकार ग्राम सभाओं को प्रदाय किया गया है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार की वन अधिकार पत्रों का वितरण की महत्वकांक्षी योजना है। राज्य शासन द्वारा स्थानीय वन निवासी सामुदायों के विभिन्न वनाअधिकारों को मान्यता दिए जाने की दिशा में प्रतिबद्धतापूर्वक सतत् प्रयास किए जा रहे है, ताकि वन अधिकार अधिनियम 2006 में वर्णित विभिन्न प्रकार के वनाधिकार उन्हें प्राप्त हो सके। अधिनियम के अनुसार वनभूमि पर अनुसूचित जाति और अन्य परंपरागत वन निवासी आवेदक द्वारा कब्जे का दावा करने के लिए 13 दिसंबर 2005 कट ऑफ डेट निर्धारित है। अन्य परंपरागत वन निवासी आवेदक के मामले में कट ऑफ डेट पूर्व से ही तीन पीढ़ियों (75 वर्ष) से संबंधित ग्राम, वन भूमि में निवासरत् होना आवश्यक है। राज्य शासन की पहल से स्थानीय वन निवासी समुदायों के लिए संबंधित ग्राम सभाओं को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार को मान्यता दी जा रही हैं। राज्य के शहरी क्षेत्रों में विभिन्न वन अधिकार पत्रों का वितरण किया जा रहा हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर राज्य में विभिन्न कारणों से निरस्त वन अधिकार के दावों पर पुनर्विचार की कार्यवाही की जा रही है। वन अधिकार अधिनियम के तहत वितरित भूमि का रिकार्ड समय-समय पर दुरूस्त करने के कार्यवाही की जा रही है। वन अधिकार प्राप्त लाभार्थी को पोस्ट क्लेम सपोर्ट के रूप में उनकी कृषि को विकसित करने के साथ ही आजीविका के विभिन्न उपायों जैसे- कुकून, टसरक्राप्स, लाख उत्पादन इत्यादि के माध्यम से लाभान्वित करने की दिशा में कार्य हो रहा है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर राज्य में विभिन्न कारणों से निरस्त वन अधिकार के दावों पर पुनर्विचार की कार्यवाही की जा रही है। वन अधिकार अधिनियम के तहत वितरित भूमि का रिकार्ड समय-समय पर दुरूस्त करने के कार्यवाही की जा रही है। वन अधिकार प्राप्त लाभार्थी को पोस्ट क्लेम सपोर्ट के रूप में उनकी कृषि को विकसित करने के साथ ही आजीविका के विभिन्न उपायों जैसे- कुकून, टसरक्राप्स, लाख उत्पादन इत्यादि के माध्यम से लाभान्वित करने की दिशा में कार्य हो रहा है।
देश में नगरीय क्षेत्र में वन अधिकारों की मान्यता दिए जाने में छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है। अब तक 266 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र, 7 सामुदायिक वन अधिकार पत्र और 4 सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र राज्य के नगरीय क्षेत्रों में प्रदाय किए गए हैं। छत्तीसगढ़ में विशेष रूप से कमजोर जनजातियों को पर्यावास के अधिकार प्रदाय करने की कार्यवाही धमतरी जिले में शुरू की गई है। सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मान्य करने की शुरूआत धमतरी जिले के जबर्रा गांव से की गई। ग्राम सभा जबर्रा को 5352 हेक्टेयर वनभूमि पर सामुदायिक वन संसाधन अधिकार की मान्यता दी गई, जो देश में किसी एक गांव की मान्य किए जाने वाला सर्वाधिक क्षेत्र है।
इसी प्रकार कांकेर जिले के खैरखेड़ा ग्राम में 1861 हेक्टेयर वन भूमि पर सामुदायिक वन संसाधन अधिकार की मान्यता दी गई है। वन अधिकार कानून के तहत प्रबंधन का बेहतर क्रियान्वयन करते हुए सामुदायिक वन संसाधन के तहत विभिन्न गतिविधियां की जा रही है। जंगल के प्रबंधन के साथ-साथ बांस का शेड एवं मचान बनाकर देशी बकरी पालन, मुर्गी पालन, खरगोश पालन, सुअर पालन, मछलीपालन आदि कार्य किया जा रहा हैं। साथ ही खरीफ फसल जैविक जिमीकंद, हल्दी बीज का उपचार कर तकनीकी विधि इंटरक्रॉपिंग से बुआई की जा रही है और बीज बैंक की स्थापना भी की गई है। इसके उपरांत वन संसाधन के संरक्षण, प्रबंधन पर विशेष बल दिया जा रहा है। वन अधिकार प्राप्त हितग्राहियों को आजीविका के लिए मत्स्य एवं जलाशयों के अन्य उत्पाद, चारागाह के उपयोग के लिए वन अधिकार दिए जाने हेतु विशेष प्रयास किए जा रहे है।
शासकीय योजनाओं के अभिसरण से व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र धाराकों को दावा पश्चात् सहायता यथा भूमि समतलीकरण, मेड़-बंधान, खाद-बीज, सिंचाई उपकरण संबंधी सहायता भी प्रदान की जा रही हैं। साथ ही इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) एवं किसान सम्मान निधि योजना से भी लाभान्वित किया जा रहा हैं।
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