महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ग्रामीणों को उनके गांव में ही दैनिक मजदूरी के जरिए रोजगार उपलब्ध कराने के साथ उन्हें रोजगार के स्थायी साधन से जोड़ने का माध्यम भी बन रही है। इस योजना की ऐसी ही एक हितग्राही बालोद जिले के गुरूर विकाखण्ड के ग्राम पेरपार की तुलसीबाई हैं। उनके घर में मनरेगा के तहत् पशु शेड का निर्माण किया गया है। तुलसीबाई ने इस शेड में पशुपालन प्रारंभ कर दुग्ध उत्पादन को अपने परिवार का मुख्य व्यवसाय बनाने में सफलता मिली है। इससे उन्हें प्रतिमाह लगभग 30 से 40 हजार रूपए की आमदनी हो रही है।
ग्राम पेरपार की तुलसीबाई अपने 14 सदस्यीय परिवार के साथ रहती है। पहले उनके परिवार के भरण पोषण के लिए लगभग 03 एकड़ खेत और 10 पशु ही थे, जिसमें से 04 दुधारू थे। पशुओं को रखने के लिए उनके घर में कोई पक्की छत की व्यवस्था नहीं थी, जिसके कारण उन्हें व्यावसायिक रूप से दुग्ध उत्पादन के कार्य में समस्याएं आ रही थी। ग्राम पंचायत की पहल पर जून 2020 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत् उनके घर पर 49 हजार 770 रूपए की लागत से पशु शेड का निर्माण किया गया। पशु शेड का निर्माण होने से तुलसीबाई ने परिवार सहित दुग्ध व्यवसाय को अपना मुख्य व्यवसाय बनाकर पशुपालन शुरू किया। इस व्यवसाय में उन्हें जो लाभ होता था, उससे उन्होंने धीरे-धीरे दुधारु पशुओं की संख्या बढ़ायी, अब उनके पशु शेड में मवेशियों की संख्या बढ़कर 42 हो गई है, जिसमें से 16 दुधारू है। प्रतिदिन लगभग 40 से 50 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है, जिसे बाजार में बेचने से उन्हें महीने मंे लगभग 40 हजार रूपए की आमदनी हो रही है।जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. रेणुका श्रीवास्तव ने बताया कि तुलसी बाई की निजी भूमि पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत् पशु शेड निर्माण होने के बाद उन्होंने शेड में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन कार्य प्रारंभ किया, इससे उन्हें जो आमदनी हुई, उससे उन्होंने 08 नए मवेशी खरीदे और 02 अतिरिक्त पशु शेड का निर्माण करवाया। वे पहले पारंपरिक रूप से पशुपालन करती थीं। जिसे अब उन्होंने डेयरी व्यवसाय में बदल दिया है। उन्होंने बताया कि शासन की गोधन न्याय योजना के तहत गोबर विक्रय से उन्हें 20 हजार रूपए की अतिरिक्त आमदनी हुई, जिससे 02 नग वर्मी कम्पोस्ट टंाका बनवाया। जिसमें वे गोबर से जैविक खाद बना रही हैं और उसे खेतों में उपयोग कर रही हैं। इससे उनकी खेती-बाड़ी भी निखर रही है।
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