:क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने इसी ट्वीट को रिट्वीट कर आंदोलन को अपना समर्थन जताया है।
क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने इसी ट्वीट को रिट्वीट कर आंदोलन को अपना समर्थन जताया है।
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में जंगल और आदिवासियों की कीमत पर खनन का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय हो चला है। मशहूर क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने इस मुद्दे पर किए गए एक ट्वीट को रिट्वीट किया है। इस ट्वीट में कोरबा और सरगुजा क्षेत्र के आदिवासियों के खनन के विरोध में रायपुर तक 300 किमी पदयात्रा का जिक्र था।
दरअसल, भारत की एक क्लाइमेट एक्टिविस्ट विनिशा ने तीन दिन पहले हसदेव बचाओ पदयात्रा का वीडियो पोस्ट किया था। सेव हसदेव हैशटैग के साथ उन्होंने लिखा था, हसदेव क्षेत्र के हजारों स्थानीय आदिवासी शांतिपूर्ण विरोध को बाधित करने की कोशिश कर रहे कोयला एजेंडा समर्थकों का सामना कर रहे हैं। वे राज्य की राजधानी तक 300 किमी पैदल मार्च पर निकले हैं ताकि अपनी जमीन से कोयला खनन को खत्म करा सकें।
इस ट्वीट को ग्रेटा थनबर्ग ने रिट्वीट किया। इसके बाद इस मुद्दे पर जगह-जगह बातचीत शुरू हुई है। कई लोग इसे अलग-अलग देशों में चल रही खनन गतिविधियों और उसके विरोध में चल रहे स्थानीय आंदोलनों से जोड़ रहे हैं। हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने के खिलाफ वर्षों से आंदोलित स्थानीय ग्रामीणों ने 4 अक्टूबर से पदयात्रा शुरु की है। वे मदनपुर से पैदल चलकर बुधवार को रायपुर पहुंचने वाले हैं। वे यहां राज्यपाल अनुसूईया उइके और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ज्ञापन देकर खनन बंद कराने की मांग करेंगे।
कोरबा के मदनपुर गांव से चले हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्रामीण राजधानी रायपुर के बाहर चरौंदा गांव तक पहुंच गए हैं।कोरबा के मदनपुर गांव से चले हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्रामीण राजधानी रायपुर के बाहर चरौंदा गांव तक पहुंच गए हैं।
रायपुर के पास चरौंदा तक पहुंच गई पदयात्रा
हसदेव बचाओ पदयात्रा मंगलवार को बलौदाबाजार जिले के दामाखेड़ा से आगे बढ़ी। शाम तक पदयात्री रायपुर जिले के ग्राम चरौंदा पहुंच गए थे। रास्ते मे सिमगा में भूमिया, लखना के ग्रामीणों एवं पंचायत प्रतिनिधियों ने पदयात्रियों का स्वागत कर अपना समर्थन जताया। बताया गया, पदयात्रा बुधवार सुबह रायपुर के लिए प्रस्थान करेगी। दोपहर में व्यास तालाब के पास बैठक होगी। कुछ देर आराम करने के बाद दोपहर 2 बजे तक रायपुर पहुंच जाएगी।
कौन हैं ग्रेटा थनबर्ग जिन्होंने आंदोलन में रुचि दिखाई
मूल रूप से स्वीडन की स्टॉकहोम निवासी ग्रेटा थनबर्ग का जन्म 3 जनवरी 2003 को हुआ था। ग्रेटा ने साल 2018 में ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्येक शुक्रवार को स्वीडिश संसद के बाहर बैठकर चर्चा शुरू की। असर यह हुआ कि कई देशों में ऐसी बैठकें शुरू हो गईं। शुक्रवार का दिन ही फ्राइडे फॉर फ्यूचर अभियान के नाम से पर्यावरण को समर्पित कर दिया गया। सितंबर 2019 में ग्रेटा को पर्यारवणविद की हैसियत से संयुक्त राष्ट्र संघ में बोलने के लिए बुलाया गया। वहां ग्रेटा ने काफी प्रभावशाली भाषण दिया। उसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पर्यावरण पर किए जा रहे पाखंड को उजागर किया।
किसान आंदोलन का समर्थन किया तो सरकार भड़की
पिछली बार ग्रेटा थनबर्ग का नाम देश में भी काफी चर्चा में रहा। उन्होंने किसान आंदोलन के समर्थन में एक ट्वीट किया। इसमें उन्होंने एक दस्तावेज भी पोस्ट कर दिया था, जिसे दिल्ली पुलिस ने टूलकिट कहा। इस मामले को केंद्र सरकार ने अंतरराष्ट्रीय साजिश के तौर पर प्रचारित किया। दिल्ली पुलिस ने एक मामला दर्ज किया, जिसके आधार पर देश भर से कुछ सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी लिया गया था।
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